चमत्कारी रमल ज्योतिष

चमत्कारी रमल ज्योतिष

– रमल आचार्य अनुपम जौली

पाँसों द्वारा प्राप्त ईश्वरीय संकेतो को समझकर उत्तर देने की विद्या, कला या विज्ञान का नाम है “रमल ज्योतिष” | भारत में इस विद्या का उद्गम भगवान शिव से हुआ और यह विद्या पूरे विश्व में फ़ैल गई | इस विद्या के संकेत भारत के अलावा अरब, यूरोप, चीन, अफ्रीका इत्यादि देशों में भी मिलते है |
महाभारत में जिस मय दानव जिसके नाम से अमेरिका में मय सभ्यता का वर्णन आता है वह भी वास्तु कला के अतिरिक्त रमल विद्या का भी बहुत ही बड़ा विद्वान् था|
रमल ज्योतिष नाम आते ही बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता की याद तुरंत आ जाती है, जिसमे पंडित जगन्नाथ की भूमिका, जो कि अपने राजा शिवदत्त के प्रश्नों के उत्तर पांसों को अपनी पट्टिका पर फेंक कर कुछ गणित करता है और तुरंत उत्तर दे देता है |

कहते है सिकंदर विश्व जीतने के सपने को लेकर जब निकला तो हर जगह के विद्वानों का वह सम्मान जरुर करता था | साथ ही जिस विद्वान से वह प्रभावित होता उसको अपने साथ अपनी टीम में शामिल क्र लेता था | ऐसे में ईरान के रमल आचार्य सुर्खाव को भी उसने अपने साथ ले लिया | अपनी सभी समस्याओं का हल वह सुर्खाव से प्राप्त करता था | सुर्खाव भी पांसों के द्वारा सिकंदर के प्रत्येक प्रश्नों के उत्तर दिया करता था | सुर्खाव का रमल विद्या पर विश्व प्रसिद्द ग्रन्थ का नाम रमल सुर्खाव है |
भारत में रमल की व्युत्पत्ति से सम्बन्धित लगभग सभी कथाओं में भगवान शिव का उल्लेख ज़रूर आता है। इसी संदर्भ में सबसे प्रचलित कथा निम्न प्रकार से है:-

एक बार महादेव व महाशक्ति कैलाश शिखर पर मनोविनोद हेतु भाँति-भाँति के खेल खेलने में मग्न थे। तभी महाशक्ति माँ पार्वती खेल-खेल में ही अचानक अंतर्ध्यान (अदृश्य) हो गईं। भगवती को इस प्रकार अदृश्य देखकर श्री सदाशिव अत्यन्त व्याकुल हो गये। माहेश्वर महाशक्ति को सहस्त्रों वर्षों तक ढूंढ़ते रहे परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। विशाद व व्याकुलता की उस स्थिति में महाशक्ति के मानसपुत्र, महाभैरव जो भगवान् सदाशिव के ही अंश रूप हैं, प्रकट हुए और पृथ्वी पर चार अंगुलियों से चार बिन्दु बना दिये। श्री सदाशिव, महाभैरव के द्वारा बनाये इन चार बिन्दुओं का भेद समझ नहीं पाये। श्री सदाशिव की दुविधा को समझ महाभैरव ने पहले बनाये चार बिन्दुओं के समीप अन्य चार बिन्दुओं की अपने हाथ की चार अंगुलियों से रचना की और श्री सदाशिव से निवेदन किया कि वह अपनी मनोभिलाषा को इन चिन्हों के भीतर ढूंढे । श्री सदाशिव ने बिन्दुओं के गूढ़ रहस्य को समझा और महाशक्ति को तारा सुन्दरी के रूप में सातवें आकाश में स्थित पाया। तत्पश्चात् श्री सदाशिव ने सातवें आकाश में पहुँच महाशक्ति को प्राप्त कर लिया। इस प्रकार चिन्ह विद्या अर्थात् रमल विद्या का सर्वप्रथम प्रकटीकरण माँ भगवती के मानस पुत्र महाभैरव द्वारा हुआ और भगवान् सदाशिव ने इसका सर्वप्रथम लाभ उठाया। अन्यत्र पुस्तकों में कही-कहीं महाभैरव को शिव का ही रूप बताया है।

इसी प्रकार रमल रहस्य ग्रन्थ में उपरोक्त कथा के अलावा भगवान शिव के द्वारा इस विद्या को माँ पार्वती जी को बताने का वर्णन भी अनेक जगहों पर आया है | जिसके अनुसार माँ पार्वती जी ने इस विद्या को लिपिबद्द किया और कालांतर में किसी गरीब शिवभक्त को उसकी आजीविका हेतु वरदान में दे दिया जिससे भूलोक में इस विद्या का अवतरण हुआ |
रमल ज्योतिष में एक विशेष दिन अष्टधातु के पांसों का निर्माण किया जाता है और विशेष मन्त्र के द्वारा उसे अभिमंत्रित किया जाता है | उसके बाद प्रश्नकर्ता के प्रश्न करने के उपरांत रमल पांसों को पट्टिका पर फेंककर उससे सोलह खानों या घरों की प्रश्न कुंडली का निर्माण होता है | जिसके द्वारा रमलज्ञ किसी भी प्रश्न का उत्तर आसानी से दे देता है |
प्राचीन काल से इस विद्या का प्रचलन रहा है और समय के साथ लुप्त प्राय इस विद्या को पुनर्जीवित किया है “आचार्य अनुपम जौली” जी ने | आचार्य अनुपम जौली जी ने इस रमल विद्या को सरलीकृत कर विधिवत शिक्षण द्वारा पुन: विश्वभर में फ़ैलाने का कार्य किया है | इसी कड़ी में आचार्य जी ने रमल ज्योतिष पर हिंदी और अंग्रेजी में पुस्तक भी लिखी है | आचार्य अनुपम जौली जी के द्वारा सन 1996 से निरंतर रमल ज्योतिष के ज्ञान को शिक्षा के रूप में देश और विदेश में अनेक कार्यशालों द्वारा सिखाया जाता रहा है और आज रमल ज्ञान को ऑनलाइन भी सिखाया जा रहा है |

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