शीतला अष्टमी, दुर्गा सप्तशति व करोना महामारी

शीतला अष्टमी, दुर्गा सप्तशति व करोना महामारी पर विशेष लेख

– आचार्य अनुपम जौली

शीतला अष्टमी की शुभकामनायें l

माँ शीतला देवी के इस विशेष दिन हम आपातकाल में किस प्रकार का भोजन अपने साथ रक्ख सकते है और रोग मुक्त हो सकते है की जानकारी मिलती है l

शीतला देवी हमें स्वच्छता और व्यक्तिगत स्वच्छता का संदेश देती है; और हमें रोग-मुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। हमें वर्तमान स्थिति में कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं l

दुर्गा सप्तशती में कुल 700 श्लोक है और प्रत्येक श्लोक अपना एक विशिष्ट अर्थ रखता है जिसको साधक अपनी कार्य सिद्धि हेतु नित्य पूजा में शामिल करता है l

जिसमें कुछ श्लोक मन्त्र रूप में विश्व के कल्याण और महामारी से मुक्ति के लिए है जिसको आप अपनी नित्य पूजा में इस्तेमाल कर सकते है l (इन मन्त्र प्रयोग का मतलब कतई नहीं है की बचाव के प्रचलित उपायों को छोड़ देना जैसे की हाथ धोना, मास्क पहन कर भीड़ भरी जगहों में जाना इत्यादिl )

महामारी-नाश के लिए

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

रोग-नाशके लिए

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥

समस्त जग के कल्याण हेतु

देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या।

तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः।

विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिए

यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो, ब्रह्म हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।

सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय, नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।

विश्व की रक्षा के लिए

या श्रीःस्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः, पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम ll

विश्व के अभ्युदय के लिए

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं, विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।

विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति, विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः।।।

विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिए

देविप्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।

विश्व के पाप-ताप-निवारण के लिए

देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः।

पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु, उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान।

विपत्ति नाश के लिए

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिए

करोतु सा नःशुभहेतुरीश्वरी

शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।

भय-नाशके लिए

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते।

भयेभ्यस्त्राहिनो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते।

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