ज्योतिष शिक्षण माला भाग – 004

नक्षत्र विवेचन

भारतीय पंचांग तथा ज्योतिष में नक्षत्रों (अंग्रेजी में Constellations) को अत्यधिक महत्व दिया गया है। परंपरानुसार ‘न क्षरतीति नक्षत्राणि’ अर्थात् जिनका क्षरण नहीं होता, वे ‘नक्षत्र’ कहलाते हैं। इन्हें अपने स्थान पर स्थिर माना गया है जबकि सूर्य सहित अन्य सभी ग्रह-उपग्रह नक्षत्रों में अपने-अपने पथ पर विचरण करते हैं। प्राचीन ज्योतिष में नक्षत्रों की संख्या 24 मानी गई थी जो वर्तमान में फाल्गुनी, आषाढ़ा तथा भादप्रदा को जोड़कर 27 हो गई हैं। यदि इनमें ‘अभिजित्’ को भी जोड़ लिया जाए तो कुल 28 नक्षत्र बताए जाते हैं। अथर्ववेद में भी 27 नक्षत्रों का उल्लेख निम्न ऋचा (19 | 7 | 1) में किया गया है-

चित्राणि साकं दिवि रोचनानि सरीसृपाणि भुवने जवानि।

तुर्मिशं समतिमिच्छमानो अहानि गीर्भिः सपर्यामि नाकम्।।

नक्षत्रों को कई उप-विभागों (छोटे-छोटे हिस्सों) में भी बांटा गया है, यथा राशियों के आधार पर तथा चन्द्रमा के रहने की अवधि के आधार पर। इन्हें मुहूर्तों में भी बांटा जाता है, उदाहरणस्वरूप कोई नक्षत्र 30 मुहूर्त रहता है, कोई 35 मुहूर्त रहता है। एक मुहूर्त 2 घटी यानि अड़तालिस मिनट का होता है। पंचांग की गणना के अनुसार चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के आधार पर फलगणना कर भाग्य व मुहूर्त बताया जाता है।



नक्षत्रों का वर्गीकरण

नक्षत्रों को दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है। पहला सात वारों की प्रकृति के अनुसार, ध्रुव (स्थिर), चर (चल), उग्र (क्रूर), मिश्र (साधारण), लघु (क्षिप्र), मृदु (मैत्र) तथा तीक्ष्ण (दारुण)। दूसरा वर्गीकरण उनके मुख के आधार पर है जिसमें उन्हें ऊर्ध्वमुख, अधोमुख तथा तिर्यंडमुख (तिरछे मुख वाले) की संज्ञा दी जाती है।

नक्षत्रों का विवेचन

नक्षत्रों का आरंभ अश्विनी से आरंभ कर भरण, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, श्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा के बाद रेवती पर समाप्त होता है। इनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है।

अश्विनी (Beta Arietis)

नक्षत्रों में प्रथम अश्विनी नक्षत्र के देवता देवचिकित्सक अश्विनी कुमार हैं। यह घोड़े के मुख के आकार का तीन तारों का पुंज है। यह लघु, क्षिप्रसंज्ञक तथा तिर्यकमुख है। इसमें 30 मुहूर्त होते हैं। इसे पुल्लिंग माना जाता है तथा इसे यंत्र, मशीनरी, रसायन, कल-कारखाने, यात्रा, कम्यूनिकेशन, कम्प्यूटर, औषधि संबंधी कार्यों को करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

भरणी (Arietis)

योनिसदृश आकार वाले भरणी नक्षत्र के देवता यमराज है। इसमें दो तारे होते हैं। अधोमुख वाला भरणी नक्षत्र 15 मुहूर्त का होता है व पुल्लिंग नक्षत्र है। उग्र व क्रूर होने के कारण इसमें शुभ कार्य वर्जित बताए गए हैं। इन नक्षत्र में आखेट कर्म, अंतरिक्ष से धरती पर प्रहार करने वाले अस्त्र आदि के प्रयोग सफल होते हैं।

कृत्तिका (Eta Tauri)

यह नक्षत्र तीस मुहूर्त का होता है व इसके देवता अग्निदेव है। इसे सूर्य का नक्षत्र भी कहा जाता है। अधोमुख वाला कृत्तिका नक्षत्र पुल्लिंग माना जाता है तथा क्षुरिका के आकार का दिखाई देता है तथा स्वभाव से साधारण व मिश्र संज्ञावाला है। इसमें सामान्य कार्य यथा फसल की बुवाई, कटाई, मड़ाई, यज्ञ-हवन का प्रारंभ, अग्निस्थापन का कार्य आदि करना शुभ माना गया है।

रोहिणी (Alpha Tauri)

पांच तारों को यह नक्षत्र पुंज आकाश में लंबे त्रिभुज (बैलगाड़ी के ढांचे) के समान दिखाई देता है। यह पुल्लिंग नक्षत्र ध्रुव तथा स्थिर प्रकृति वाला व ऊर्ध्वमुखी है। इस नक्षत्र के स्वामी ब्रह्मा है। रोहिणी नक्षत्र को शुभ मानकर इसमें समस्त मांगलिक कार्यों को करने की आज्ञा दी गई है। साथ ही मंदिर, भवन, किले, मीनारें, छत्र आदि बनवाने, तारों संबंधी कार्य करने, वायुयान उड़ाने संबंधी कार्य भी शुभ बताए गए हैं।

मृगशिरा (Lambda Orionis)

इस नक्षत्र के स्वामी चन्द्रदेव है। यह आकाश में तीन तारे (जो मृगों के सिर की भांति दिखाई देते हैं) का समूह है। 30 मुहूर्त वाला मृगशिरा नक्षत्र मृदु तथा मैत्री स्वभाव वाला तिर्यक मुख है। इस नक्षत्र में हाथी, घोड़ा, वाहन, खेती, नौकाविहार, खेल, वन तथा पौधों आदि से जुड़े कार्यों का करना शुभ माना जाता है।

आर्द्रा (Alpha Orionis)

तीक्ष्ण तथा दारूण स्वभाव वाला आर्द्रा नक्षत्र ऊर्ध्वमुखी है। यह स्त्रीलिंगी तथा विषैला नक्षत्र है। आर्द्रा नक्षत्र में विषाक्त प्राणियों तथा विष संबंधी कार्यों से दूर रहने की आज्ञा दी गई है। इसमें शुभ कार्य करने की मनाही की गई है।

पुनर्वसु (Beta Geminarium)

45 मुहूर्त वाला पुनर्वसु नक्षत्र 4 तारों का समूह है जो घर के आकार में दिखाई देता है। यह स्त्रीलिंगी नक्षत्र है जिसकी स्वामिनी देवमाता अदिति हैं। यह चर प्रकृति वाला शुभ नक्षत्र माना गया है जिसमें मांगलिक कार्य यथा गृहनिर्माण, वास्तुकर्म, नववधू प्रवेश, नए कार्य आरंभ करना शुभ तथा सौभाग्यदायी माना गया है।

पुष्य (Delta Cancri)

यह 30 मुहूर्त वाला स्त्रीलिंगी, लघु-क्षिप्रसंज्ञक तथा ऊर्ध्वमुखी नक्षत्र है। पुष्य नक्षत्र के स्वामी देवगुरु बृहस्पति है। गुरुवार तथा रविवार को पुष्य नक्षत्र होना अत्यन्त शुभ माना गया है। इस नक्षत्र में विवाह को छोड़कर अन्य सभी शुभ व मांगलिक कार्य करना उत्तम बताया गया है। परन्तु यदि शुक्रवार को पुष्य नक्षत्र हो तो उस समय उत्पात योग बनता है जिसमें कभी भी कोई भी शुभ कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए।

श्लेषा (Epsilon Hydrae)

श्लेषा नक्षत्र को आश्लेषा नक्षत्र भी कहा जाता है। यह तीक्ष्ण, दारूण तथा अधोमुख माना गया है जिसमें खेती संबंधी शुभ कार्य किए जा सकते हैं परन्तु अन्य कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। श्लेषा नक्षत्र का स्वामी सर्प है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चों के लिए शांति कर्म करवाना चाहिए।



मघा (Alpha Leonis)

स्वभाव से क्रूर मघा नक्षत्र 30 मुहूर्त वाला तथा स्त्रीलिंगी नक्षत्र है। मघा को क्रूर व उग्र प्रकृति वाला तथा अधोमुखी माना गया है। यह विष नक्षत्र है जिसके स्वामी पितृ हैं। इस नक्षत्र में विवाह, खेती, वृक्षारोपण, बाग-बगीचे संबंधी कार्य करना उत्तम बताया गया है परन्तु अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते। यह गण्डान्त नक्षत्र है, अतः इसके प्रारंभ की तीन घटी में कोई भी मांगलिक कार्य नही किया जाता है।

पूर्वाफाल्गुनी (Delta Leonis)

दो तारों से बना और खाट के आकार वाला पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र उग्र व क्रूर प्रकृति वाला अधोमुखी नक्षत्र है जिसमें 30 मुहूर्त होते हैं। इसके स्वामी भग देवता हैं। इस नक्षत्र को गणित, व्यापार संबंधी, खान खोदने संबंधी, कुंआ खोदने संबंधी, जमीन से जुड़े कार्य, भवन निर्माण कार्य आदि करने के लिए शुभ बताया गया है। प्राचीन काल में एक ही फाल्गुनी नक्षत्र माना जाता था जो कालान्तर में दो माने जानने लगे।

उत्तराफाल्गुनी (Beta Leonis)

इस नक्षत्र में भी दो ही तारे हैं। इसका आकार पर्यंक के समान है। स्त्रीसंज्ञक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र 45 मुहूर्त वाला ऊर्ध्वमुखी, ध्रुव तथा स्थिर प्रकृति का नक्षत्र है। यह विवाह सहित सभी कार्यों विशेष रूप से विद्यारम्भ तथा विद्यासंबंधी कार्यों के लिए उत्तम माना गया है। इस नक्षत्र में कथा-प्रवचन, वास्तुकर्म, कुआं खोदना, पुस्तकालय, विद्यालय, प्रशिक्षण आदि कार्यों के लिए शुभ बताया गया है।

हस्त (Delta Carvi)

इस नक्षत्र में पांच तारे हैं जो हाथ के पंजे की आकृति के समान दिखाई देते हैं। तिर्यकमुखी तथा लघु प्रकृति वाले हस्त नक्षत्र के स्वामी सूर्यदेव हैं। इस नक्षत्र को लक्ष्मीदायी अर्थात् सौभाग्य देने वाला माना गया है। इस नक्षत्र को व्यापार, वाणिज्य तथा यज्ञ, हवन आदि के लिए विशेष फलदायी माना गया है परन्तु इस नक्षत्र में विवाह तथा अन्य समस्त धर्मकार्य भी किए जाते हैं। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य हस्त नक्षत्र में हो तब यदि वर्षा होती है, उस समय फसल बहुत अच्छी होती है।

चित्रा (Spica)

अन्य नक्षत्रों के समान चित्रा अनेक तारों का समूह पुंज न होकर अकेला तारा है जो मोती जैसा चमकता है। इसके स्वामी त्वष्टा है। यह मृदु, मैत्री स्वभाव वाला तिर्यकमुखी नक्षत्र है। इस नक्षत्र को शुभ मानकर इसमें साझेदारी का व्यापार आरंभ करना, मैत्री संबंध बनाना, विवाह करना, राजनैतिक संबंध बनाना आदि कार्यों को करने की आज्ञा दी गई है।

स्वाति (Alpha Bootes)

यह नक्षत्र एक गणतारा प्रवाल सदृश है जिसके स्वामी वायुदेव हैं। यह तिर्यकमुखी चर नक्षत्र है तथा इसे विवाह नक्षत्रों में प्रमुख माना जाता है। स्वाति नक्षत्र में होने वाली वर्षा फसलों के लिए अमृत के समान मानी गई है। इस नक्षत्र में विवाह के अतिरिक्त यात्रा संबंधी, वाहनों का क्रय-विक्रय, प्रिटिंग संबंधी कार्य शुभ माने गए हैं।

विशाखा (Alpha Librae)

चार तारों के समूह से बना विशाखा नक्षत्र अधोमुखी, मिश्र तथा साधारण प्रकृति का माना गया है। इसके स्वामी इन्द्राग्नि है। इस नक्षत्र में अग्नि संबंधी सभी कार्य करना उत्तम बताया गया है। इस नक्षत्र में विद्युत तथा दूरसंचार संबंधी कार्य आरंभ करने पर सफलता मिलती है।

अनुराधा (Delta Scorpii)

इस नक्षत्र में चार या छह तारे रथ के आकार सदृश दिखाई देते हैं। यह मैत्रीसंज्ञक नक्षत्र है जिसे विवाह के लिए अति उत्तम बताया गया है। इस नक्षत्र में विवाह के अतिरिक्त सुगंधित पदार्थों का व्यवसाय, हाथी, घोड़ी, ऊंट अथवा वाहन संबंधी कार्य भी किए जा सकते हैं। अनुराधा नक्षत्र में चिकित्सा कार्य, सर्जरी आदि करने से रोगी के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।

ज्येष्ठा (Alpha Scorpii)

ज्येष्ठा गण्डान्त का नक्षत्र है जिसके स्वामी इन्द्र हैं। इस नक्षत्र के अंत की तीन घटियां दोषपूर्ण होती है जबकि चतुर्थ चरण में किसी भी शुभ कार्य को करने के निषेधाज्ञा है। ज्येष्ठा नक्षत्र को राज्याभिषेक, पदग्रहण, शपथग्रहण, शासकीय कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु उत्तम माना गया है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिए गण्डान्त दोष हेतु शांतिकर्म करवाना चाहिए।



मूल (Lambda Saggittarii)

इस नक्षत्र में ग्यारह या बारह तारे माने जाते हैं। यह भी गण्डान्त नक्षत्र है जिसका स्वामी निर्ऋति नामक राक्षस है। इस नक्षत्र में विवाह के अतिरिक्त अन्य सभी शुभ कार्यों को करने की मनाही है। परन्तु इस नक्षत्र में उग्र व क्रूर कार्य तथा अस्त्र-शस्त्रों का अभ्यास आदि किए जा सकते हैं। मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिए शांति का अनुष्ठान करवाना चाहिए।

पूर्वाषाढ़ा (Delta Saggittarii)

चार तारों के समूह से बना पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र जलकर्म हेतु अति उत्तम माना गया है। इस नक्षत्र में तालाब, कुआं खोदना, नहर बनाना, तेल की लाइन बिछाना आदि कार्य किए जाते हैं। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उग्र कर्म तथा अग्नि कर्म भी किए जा सकते हैं।

उत्तराषाढ़ा (Sigma Saggittarii)

दो तारों के समूह से बना उत्तारषाढ़ा नक्षत्र ध्रुव-स्थिर प्रकृति वाला ऊर्ध्वमुखी नक्षत्र है। इस नक्षत्र के स्वामी विश्वेदेव हैं। इसे बुद्धिप्रदाता नक्षत्र भी माना गया है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ध्वज, पताका, छत, तोरण, पुल/पुलिया बनवाना, मुकुट आदि का निर्माण करना, हल चलाना, बीज बोना, वाहन चलाना, रेलवे लाइन बिछाना आदि कार्य प्रशस्त हैं।

अभिजित् (Vega)

आकाश के सर्वाधिक चमकदार नक्षत्रों में एक अभिजित् अकेला ऐसा नक्षत्र है जो आकाशगंगा से बाहर है, अतः इसे मुहूर्त के अतिरिक्त अन्य कार्यों हेतु नहीं गिना जाता। अभिजित् नक्षत्र में तीन तारे त्रिकोणाकृति में दिखआई देते हैं। इस नक्षत्र को प्रतीक्षालय (यात्रागार) के निर्माण हेतु उचित माना गया है।

श्रवण (Alpha Aquilae)

यह नक्षत्र तीन तारों से मिलकर बना है जो विष्णु के तीन पगों के आकार में माने गए हैं। श्रवण नक्षत्र के स्वामी भगवान विष्णु है। यह ऊर्ध्वमुखी नक्षत्र है। इसमें यज्ञशाला का निर्माण, जनेऊ संस्कार, कृषिकार्य, कथावाचन, प्रवचन, धर्मग्रन्थों का लेखन, विवाह आदि, वाहन की सवारी, पहाड़ों की यात्रा, तीर्थयात्रा, दूरसंचार साधानों का उपयोग आदि करना शुभ माना गया है।

धनिष्ठा (Beta Delphini)

मृदंग के आकार सदृश दिखाई देने वाले चार तारों के समूह से बना धनिष्ठा नक्षत्र शुभ नक्षत्रों में माना गया है। इस नक्षत्र को विद्यारंभ हेतु श्रेष्ठ बताया गया है। इस नक्षत्र में बीज बोना, वाहन प्रयोग, यात्रा, जनेऊ संस्कार, रोजगार, वाणिज्य, व्यवसाय आदि कार्य प्रशस्त है।

शतभिषा (Lambda Aquarii)

शतभिषा नक्षत्र के स्वामी वरुण देव है। यह नक्षत्र मैत्री कार्य, वाणिज्य, व्यापार, चुनाव-प्रचार, प्रचार-प्रसार, क्रय-विक्रय, कृषि कार्य, यात्रा, गौशाला, गजशाला, अश्वशाला, गैरेज आदि के निर्माण तथा प्रवेश के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक वाद-विवाद में कुशल, विद्वान तथा प्रभावशाली वक्ता होता है।

पूर्वाभाद्रपदा (Alpha Pegasi)

उग्र तथा क्रूर स्वभाव वाले पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र के स्वामी अजैकपात् नामक देव है। इस नक्षत्र को जलसंबंधी कार्यों हेतु यथा कुआं, तालाब, नहर, तड़ाग, पानी की टंकी, टैंक, जल पात्र आदि के निर्माण तथा उपयोग हेतु प्रशस्त बताया गया है। इस नक्षत्र को ‘पूर्वाप्रौष्ठपदा’ भी कहा जाता है।

उत्तराभाद्रपदा (Gamma Pegasi)

दो तारों के समूह से बने उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के स्वामी अहिर्बुध्न्य है। यह विवाह का नक्षत्र है जिसमें स्थिर कार्य, कृषि कार्य, कूप, तालाब, तड़ाग आदि का निर्माण, मैत्री संबंध बनाना, अश्वशाला का निर्माण, वाहन प्रयोग, संन्यासग्रहण, वानप्रस्थग्रहण, गृहत्याग आदि कार्य किए जाते हैं। उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र को ‘उत्तरप्रौष्ठपदा’ भी कहा जाता है।

रेवती (Zeeta Piscium)

32 तारों वाले रेवती नक्षत्र को ‘पौष्ण’ भी कहा जाता है, इसके देवता पूषा है। रेवती नक्षत्र में धार्मिक कार्य, विवाह, मैत्रीकर्म आदि कार्य करना शुभ होता है। रेवती नक्षत्र में कृषि कार्य, मकान बनाना, यात्रा करना, देवप्रतिमा की प्रतिष्ठा करना आधि कार्य श्रेष्ठ बताए गए हैं, परन्तु धनिष्ठा के उत्तरार्ध से रेवतीपर्यन्त तक के नक्षत्र पंचक कहलाते हैं जिनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं करने की आज्ञा दी गई है।



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